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{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
{{KKCatRubaayi}}
<poem>
सीने में कोई कर्ब सा बो जाता है
आता है तो पलकों को भिगो जाता है
गर साथ भी रहता है, तो सपना बन कर
खुलते ही मगर आंख वो खो जाता है।
</poem>
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|रचनाकार=रमेश तन्हा
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|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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सीने में कोई कर्ब सा बो जाता है
आता है तो पलकों को भिगो जाता है
गर साथ भी रहता है, तो सपना बन कर
खुलते ही मगर आंख वो खो जाता है।
</poem>