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|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
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<poem>
इक आलम बेबसी का है, क्या देखें
फुकदान सा रौशनी का है क्या देखें
अपना ही अता पता नहीं कुछ इसको
रोना यही ज़िन्दगी का है, क्या देखें।
</poem>
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