573 bytes added,
05:46, 7 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
{{KKCatRubaayi}}
<poem>
यह ग़म की अता कैसी अता है या रब
यह कोई सज़ा है कि जज़ा है या रब
इक आग का दरिया जो किनारों पे हो शांत
क्यों मुझको ही सिर्फ इस ने चुना है या रब।
</poem>