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05:52, 7 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
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<poem>
इंसान की उम्मीद के लटके देखो
देती है उसे क्या क्या झटके देखो
गर देखना हो गुल ये खिलाती है क्या
उम्मीद को उम्मीद से हटके देखो।
</poem>