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|संग्रह=शोरे-तन्हाई / रमेश तन्हा
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<poem>
क्या किसी और को अहवाल सुनाऊँ तेरा
जब पता कोई भी खुद मैं ही न पाऊं तेरा।

जामे-हर-नोश में तेरी ही हवालत जानूँ
सीना-ए-संग में शोला भी मैं पाऊँ तेरा।

न तिरी शक्ल से वाकिफ़ न तिरी बॉस से मैं
कोई पूछे भी तो क्या नाम बताऊँ तेरा।

तेरी ही हम्द-ओ-सना लिक्खूं तुझे ही चाहूँ
तेरी ही पूजा करूँ गीत भी गाऊँ तेरा।

जुस्तजू में तिरी कब तक मैं रहूँ सरगर्दा
लाख कोशिश भी करूँ पार न पाऊं तेरा।

तेरे दीदार में खो जाऊँ सआदत जो मिले
दीदा-ए-शौक़ दे हर जल्वा चुराऊँ तेरा।

अपनी कोई तो खबर दे कोई मौकिफ तो बता
तेरे बंदों को मैं क्या धाम बताऊँ तेरा।

एक तू ही तो मिरी जा-ए-अमां है 'तन्हा'
और किस दर पे मैं दर छोड़ के जाऊँ तेरा।
</poem>
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