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मुक्तिबोध के लिए / रमेश रंजक

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|संग्रह=दरिया का पानी / रमेश रंजक
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<poem>
जब हवा ने सूचना दी मर गया वह

चील, कौवे. गिद्ध, कुत्ते आ गए
मार के मारे हुए को खा गए

जाते-जाते एक दावत कर गया वह !
मर गया वह ! !

मांस की तारीफ़ सुनकर चील से,
हड्डियों की श्वान से — तफ़सील से,
काक बोला — बन्धु ! उसकी आँत में
वह मज़ा पाया, न पाया भात में;
गिद्ध ने फिर सिद्ध मुद्रा में कहा —
वह हमारा पहरुआ था, पहरुआ !

दूसरे दिन पत्र में छापा गया —
’एक आवश्यक कमी को भर गया वह !’
मर गया वह ! !
</poem>
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