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{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश रंजक
|अनुवादक=
|संग्रह=दरिया का पानी / रमेश रंजक
}}
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<poem>
पस्त हुआ, ध्वस्त हुआ,
हार नहीं मानी ।
जूझा हूँ — मौसम से
कुरसी के बाज़ से
माँगे दो फूल नहीं
दम्भी ऋतुराज से
पतझड़ में जीया —
देवदारू स्वाभिमानी ।
कितना कुछ टूटा है,
छूटा है राह में
आएगा जो भी, वह
झाँकेगा थाह में
मुझ में ही पाएगा
दीन और दानी ।
</poem>
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|संग्रह=दरिया का पानी / रमेश रंजक
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पस्त हुआ, ध्वस्त हुआ,
हार नहीं मानी ।
जूझा हूँ — मौसम से
कुरसी के बाज़ से
माँगे दो फूल नहीं
दम्भी ऋतुराज से
पतझड़ में जीया —
देवदारू स्वाभिमानी ।
कितना कुछ टूटा है,
छूटा है राह में
आएगा जो भी, वह
झाँकेगा थाह में
मुझ में ही पाएगा
दीन और दानी ।
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