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{{KKRachna
|रचनाकार= बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक=सुरेश सलिल
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
और मैं सोचा करता अक्सर :
बहुत आसान शब्द काफ़ी होंगे ।
जब मैं कहूँ —
कैसी हैं चीज़ें
हरेक का दिल चिन्दी-चिन्दी होगा ।
कि तुम रसातल में धँस जाओगेअँधेरेअगर पैर जमाए खड़े न रहे —
देख ही रहे हो यह तुम !
1956 : सम्भवतः ब्रेष्त की अन्तिम कविता
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल'''
</poem>
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|रचनाकार= बैर्तोल्त ब्रेष्त
|अनुवादक=सुरेश सलिल
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और मैं सोचा करता अक्सर :
बहुत आसान शब्द काफ़ी होंगे ।
जब मैं कहूँ —
कैसी हैं चीज़ें
हरेक का दिल चिन्दी-चिन्दी होगा ।
कि तुम रसातल में धँस जाओगेअँधेरेअगर पैर जमाए खड़े न रहे —
देख ही रहे हो यह तुम !
1956 : सम्भवतः ब्रेष्त की अन्तिम कविता
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल'''
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