भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= केदार गुरुङ |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKC...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= केदार गुरुङ
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatNepaliRachna}}
<poem>
धर्ती हाम्रो भान्से आमा
आकाश हाम्रो पिता-पुरखा
सूर्य, तारा दाज्यू-भाइ
प्रकृति हुन दिदी-बहिनी

सपनीमा के देख्यो-देख्यो हो
ब्यूँझी नाच्यो हाम्री मारुनी

सारा धर्ती थर्कीआयो
किरातेश्वरले ताण्डव रचायो
ब्यूँझिए सारा पशु-पक्षी
रमाइ उठ्यो सारा प्रकृति

वारि झलल पारि झलल
चारैतिर बल्न थाल्यो बत्ती झलल
नाच्दै आयो ढँटुबारे बल्ल-बल्ल
हाँस्न थाले सबै गलल।

</poem>
Mover, Reupload, Uploader
10,400
edits