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{{KKRachna
|रचनाकार=शशिप्रकाश
|अनुवादक=
|संग्रह=कोहेकाफ़ पर संगीत-साधना / शशिप्रकाश
}}
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<poem>
एक दिन अचानक
दहक उठेंगे पर्वत
सदियों के सोए संकल्प जागेंगे
विस्मृति के अँधेरे से
बाहर आ जाएँगी अजेय आत्माएँ
मुक्त होंगी कल्पनाएँ
सृजन के अग्निपक्षी निर्बन्ध
उड़ेंगे उन्मुक्त आकाश में ।
</poem>
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|संग्रह=कोहेकाफ़ पर संगीत-साधना / शशिप्रकाश
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एक दिन अचानक
दहक उठेंगे पर्वत
सदियों के सोए संकल्प जागेंगे
विस्मृति के अँधेरे से
बाहर आ जाएँगी अजेय आत्माएँ
मुक्त होंगी कल्पनाएँ
सृजन के अग्निपक्षी निर्बन्ध
उड़ेंगे उन्मुक्त आकाश में ।
</poem>