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{{KKRachna
|रचनाकार=देवी प्रसाद मिश्र
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
वे पिछले कुछ दिनों से तानाशाह को हटाने
के कारोबार में लगे थे ।
वे सुबह ही निकल जाते थे ।
यह स्वतन्त्रता के लिए घर से निकलना था ।
कुछ लोग टिफ़िन लेकर जाते थे ।
पूरे दिन लड़ना है तो दोपहर का खाना लेकर
निकलना चाहिए ।
लेकिन यह शाम को न लौटने के लिए जाना
था ।
यह तीसरे दिन भी न लौटने के लिए जाना
था ।
यह बदलाव के लिए मारे जाने के लिए जाना
था — शहर के चौक की तरफ़ दोपहर का खाना
लेकर ।
</poem>
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वे पिछले कुछ दिनों से तानाशाह को हटाने
के कारोबार में लगे थे ।
वे सुबह ही निकल जाते थे ।
यह स्वतन्त्रता के लिए घर से निकलना था ।
कुछ लोग टिफ़िन लेकर जाते थे ।
पूरे दिन लड़ना है तो दोपहर का खाना लेकर
निकलना चाहिए ।
लेकिन यह शाम को न लौटने के लिए जाना
था ।
यह तीसरे दिन भी न लौटने के लिए जाना
था ।
यह बदलाव के लिए मारे जाने के लिए जाना
था — शहर के चौक की तरफ़ दोपहर का खाना
लेकर ।
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