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<Poem>
घाटी और इसके सारे जंगल पतझड़ी रंग में रंगे हैं
एक मुसाफ़िर आता है । उसे एक नक़्शा यहाँ ले आया
या फिर उसकी याददाश्त, बहुत पहले कभी सूरज
जब सबसे पहले बर्फ़ गिरी, इस रास्ते से गु्ज़रते हुए
वह प्रफुल्लित हुआ था, हर चीज़ में चमकते दरख़्तों की,
चिड़िया की उड़ान की , पुल पर रेलगाड़ी की ताल थी
गति में उत्सव. वह कई बरसों के बाद लौटा, उसे कुछ नहीं
चाहिए था, सिवाय एक चीज़ के, एक महत्वपूर्ण चीज़ के
वह देखना चाहता था, पवित्र और सहज, अनाम
बिना किसी आशा, भय या आशा के
उस तट पर, जहाँ न कोई " मैं" या फिर " ना-मै" हो ।

'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : रति सक्सेना'''
</poem>
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