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सॉनेट — 24
तुम स्मरण करोगी वो उछलता झरना
जहाँ से उठी और काँपी वह मधुर सुगन्ध,
कभी-कभी एक पंछी पल और धीमी गति का
आवरण पहने अपने पंखों पर ।
 
तुम स्मरण करोगी धरा से प्राप्त उपहार :
न मिटने वाली सुगन्ध, सुनहरी माटी
झाड़ी में जंगली बीज और फैली हुई जड़ें
जादुई काँटों सी चन्द्रहासें ।
 
तुम स्मरण करोगी वह पुष्पगुच्छ जो उठाया था तुमने,
परछाइयाँ और शान्त जल,
पुष्पगुच्छ सा झाग से आवृत पत्थर ।
 
वह समय था ’कभी नहीं’ सा और ’सदैव’ जैसा ।
हम जाते हैं वहाँ जहाँ कोई नहीं है प्रतीक्षारत;
हम पाते हैं वहाँ प्रतीक्षारत सब कुछ ।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनीत मोहन औदिच्य'''
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