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|रचनाकार=रसूल हम्ज़ातव
|अनुवादक=मदनलाल मधु
|संग्रह=मेरा दग़िस्तान / रसूल हम्ज़ातव / मदनलाल मधु
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<poem>
अभी तुम धागे के गोले से
गॊली फिर तुम बनो मगर,
बनो हथौड़ा ऐसा भारी
जो तोड़े पर्वत, पत्थर ।

तीर बनोगे ऐसे तुम जो
बैठे ठीक निशाने पर,
नर्तक भी तुम सुघड़ बनोगे
गायक ऐसे, हो मधुमय स्वर ।

गली-मौहल्ले के लड़कों में
तेज़ सभी से दौड़ोगे,
घुड़दौड़ों में सब लोगों को
तुम तो पीछे छोड़ोगे ।

घाटी में से तेज़ तुम्हारा
घोड़ा उड़ता जाएगा,
बादल बन नभ में जा पहुँचे
वह जो धूल उड़ाएगा ।


'''रूसी भाषा से अनुवाद : मदनलाल मधु'''
</poem>
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