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उजला पक्ष / कल्पना मिश्रा

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<poem>
जो एंबुलेंस पहले
यदा कदा दिखाई देती थी,
और सिहर उठते थे
उसके साईरन से
अब दिन मे कई दफा
क्रंदन करती गुजरती है
दहशत और डर जीवन में स्थाई न बन जाएं
इसलिए
एक चिड़िया मेरे आंगन में फुदकती है
एक बया ने बनाया है घोसला अभी अभी
एक गौरैया आ मुंडेर पे दाने चुगती है।
एक तितली मंडराती रहती है फूलों पर
अब भी हरसिंगार के फूल रोज झरते है
अब भी गेंदे में पीले कत्थई फूल खिलते हैं।
</poem>