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'''(दिलचस्प बात यह है कि 1945 में पत्नी पिराए के लिए लिखी इस कविता को कुछ लोग नाजिम नाज़िम के लिए लिखी पिराए की कविता भी मानते हैं।)'''
मेरी दिली ख़्वाहिश है
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