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Kavita Kosh से
चाहो या न, वह आन्दोलित करती रहेगी तुम्हारे शान्त हृदय को,
आँसू बहेंगे तुम्हारी आँखों से, काँप उठेगा तुम्हारा हृदय, ग़ायब हो जाएगी सहज विश्वास करते तुम्हारे हृदय की निश्चितता,
संभव है तुम्हें मेरे प्रेम से डर लगता होगा, लगता रहेगा सदा । सदा।
प्रिय, डर रहा हूँ कहीं वंचित न रहूँ अन्तिम आनन्द से,
मुझसे माँग न करो किन्हीं ख़तरनाक नई बातों की,