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न नछान्नुस् त्यस्तो वर
जो जाँड र त्यसैको निगारको घ्याम्पोमा
डुबिरहन्छ अक्सर ।
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'''[[उतनी दूर मत ब्याहना बाबा ! / निर्मला पुतुल |इस कविता का मूल हिन्दी पढ्ने पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करेँ करें ।]]'''
</poem>
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