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|संग्रह=फटी हथेलियाँ / नेहा नरुका
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<poem>
मैंने सुना था
इस दुनिया में
कुछ भी मुफ़्त में नहीं मिलता

हर मुफ़्त चीज़ की क़ीमत
कभी न कभी
चुकानी होती है

इसलिए मैंने
चीज़े नहीं ख़रीदीं
प्रेम किया
बदले में मुझे
'और अधिक प्रेम' मिला

इस प्रेम में
'अधिक' की क़ीमत
मुझे ज़िन्दगी भर चुकानी पड़ी ।
</poem>
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