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|संग्रह=रास्ता बनकर रहा / राहुल शिवाय
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<poem>
सूरज के पाँवों में मुझे छाला नहीं मिला
जुगनू से आसमां को उजाला नहीं मिला

पत्थर में शिव की प्राप्ति उन्हें हो नहीं सकी
जिनको कि आदमी में शिवाला नहीं मिला

अब शक भरी निगाहों से उसको न देखिए
उसकी तो दाल में कहीं काला नहीं मिला

ज़ख्मों को देख सिर्फ़ नमक बाँटते हैं लोग
कोई भी दर्द बाँटने वाला नहीं मिला

जो सच था उसको लोगों ने अफ़वाह कह दिया
सच्ची ख़बर में उनको मसाला नहीं मिला

इफ़तारी जम के राजभवन में थी चल रही
भूखों को रास्ते पे निवाला नहीं मिला

धरती से जो लिया उसे धरती को दे दिया
किरणों के पास चाबी या ताला नहीं मिला
</poem>
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