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|संग्रह=रास्ता बनकर रहा / राहुल शिवाय
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<poem>
घुप अँधेरा है मगर तू रोशनी को ढूँढ ले
दुख भरी इस ज़िन्दगी से चल ख़ुशी को ढूँढ ले

दूर है मंज़िल भले ही और रस्ता है कठिन
ज़िंदगी के इस सफ़र में तू किसी को ढूँढ ले

मौत के दर पर खड़ी है लाख तेरी ज़िन्दगी
ज़िन्दगी अनमोल है, तू ज़िन्दगी को ढूँढ ले

क्यों भला प्यासा खड़ा है इस समंदर के क़रीब
प्यास पल में मिट सके, ऐसी नदी को ढूँढ ले

जिसने ईमां को ही दौलत आज तक समझा यहाँ
भीड़ में खोए हुए उस आदमी को ढूँढ ले
</poem>
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