भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
हमारे पिता, जो बसे हैं हमारी धरती में,
जो पानी में हैं और हवा में भी हैं
हमारी पृथ्वी के विशाल और मौन विस्तार में समाए हुए हैं जो ।जो।
पिता !
हमारे देश में सब कुछ तुम्हारे ही नाम पर है ।