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भारत के शहनशाहों में एक ऐसा बशर था
शाइर था, सुख़नवर था, मुज़फ्फर मुज़फ़्फ़र था, जफ़र था
इक दूजे से हम दूरी भी रही और नहीं दूर रहे फिर भी रहे ख़ुशहम
ये साथ गुज़ारे हुए लम्हों का असर था
अश्कों से मेरा दामने-दिल दोस्तो तर था
मुफ़लिस को थी उम्मीद मुदारात थी ख़ैरात की जिससेमुफ़लिस को जहां सेमालूम हुआ उसका भी फ़ाकों फ़ाक़ों पे गुज़र था
कोई भी न थी नामा-ए-आमाल में नेकी
इक बात बता मुझको 'रक़ीब' आज ख़ुदारा
क्या दिल में तेरे तिरे भी कई असनाम का घर था 
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