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|रचनाकार=नाज़िम हिक़मत
|अनुवादक=मनोज पटेल
|संग्रह=
}}
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<poem>
04 1945
अपने वही कपड़े निकालो
जिन्हें पहने हुए थीं तब,
जब मुझसे मिली थीं पहली बार ।
सबसे सुन्दर नज़र आओ आज
वसन्त ऋतु के पेड़ों की तरह
अपने जूड़े में वह कारनेशन का फूल लगाओ
जो मैंने तुम्हें जेल से भेजा था एक चिट्ठी में ...।
ऊपर उठाओ अपना चूमने लायक, चौड़ा - गोरा माथा
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल'''
</poem>
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04 1945
अपने वही कपड़े निकालो
जिन्हें पहने हुए थीं तब,
जब मुझसे मिली थीं पहली बार ।
सबसे सुन्दर नज़र आओ आज
वसन्त ऋतु के पेड़ों की तरह
अपने जूड़े में वह कारनेशन का फूल लगाओ
जो मैंने तुम्हें जेल से भेजा था एक चिट्ठी में ...।
ऊपर उठाओ अपना चूमने लायक, चौड़ा - गोरा माथा
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल'''
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