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|रचनाकार=शिशुपाल सिंह 'निर्धन'
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<poem>
हँसे हेरत, टेरत काहे उन्हें,
किस गन्ध पे छन्द लुटावत हो ?
अँखियाँ न रिझावत हैं छवि जो,
अँखियान में क्यों न बसावत हो ?

मन काहे मरोरत हो हरि सों,
हिय कौन से रंग रंगावत हो ?
जब नैनन में हरि नाचत हैं,
तब काहे को नैन नचावत हो?
</poem>
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