भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
भागते भूत की लंगोटी भली
सोचकर 'हाँ' कर दी
हमारीडाक्टरी जांच की गईकूदने फांदने कीसात दिन बाद'शो' मे लाया गयाउचक-उचक करदिखा रहे थे कलाबाजियाँदर्शक-गण बुद्धू बनेबजा रहे थे तालियाँतभी अक्स्मात छूट गया हाथजा गिरेकटघरे में शेर केगिरते ही चिल्लाए-"बचाओ-बचाओ।"तभी शेर बोला-"शोर मत मचाओपेट का सवाल हैहमारे उपर भीशेर की खाल हैहम भी है तुम्हारी तरह सिखाए हुएएम्पलायमेंट एक्सचेंज के लागाए हुए।"