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न तो रवि न ही चंद्र तारा और न ही बिजलियाँ,<br>
उस स्व प्रकाशित ब्रह्म के तो समीप न ही अग्नियाँ। <br>
होती प्रकाशित, ब्रह्म तो सब ज्योतियों का मूल है,<br>
उससे प्रकाशित जग चराचर, सूक्ष्म है स्थूल है॥ [ १० ]<br><br>
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में व्याप्त व्यापकता परम की, व्याप्त ब्रह्म है एक सा। <br>
बहु सर्व व्यापकता प्रभो की, एक सी अणु-कण में है,<br>
वह विश्व में ब्रह्माण्ड में, परब्रह्म तो हर क्षण में है॥ [ १० ११ ]<br><br>
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