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Kavita Kosh से
‘आपका स्वागत है’ पढ़कर शहर की दीवार पर
खेत ,घर ,खलिहान अपना अपने तो जला डाला गयाडाले गए
हम मगर बैठे ग़ज़ल लिखते रहे मल्हार पर.
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