भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
‘आपका स्वागत है’ पढ़कर शहर की दीवार पर
खेत ,घर ,खलिहान अपना अपने तो जला डाला गयाडाले गए
हम मगर बैठे ग़ज़ल लिखते रहे मल्हार पर.
</poem>