भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
और वो इतनी चतुर है
कि आपको पता भी नहीं न चले
वो कहाँ आपके इंतज़ार में है
पर मौत आपको मौका देती है
अपनी घड़ियों को घड़ियाँ जमा लेने का
जब वो चूस रही हो रस