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{{KKRachna
|रचनाकार=तुलसी रमण
|संग्रह=घर एक यात्रा / तुलसी रमण
}}
<poem>
एक साँचों का घर है
जिसके अलग-अलग आकार के
अनेक साँचों में
एक ही आदमी रहता है
हर सुबह
सायरन बजने पर
साचों के के घर में घुसता है
और दिन भर
हर साँचे के आकार में
फैलता और
सिकुड़ता जाता है
सबसे बड़े साँचे से
सबसे छोटे साँचे की ओर
आदेश का दरिया
बहता है
सबसे छोटे साँचे से सबसे बड़े साँचे तक
सर-सर हवा
निसरती है
</poem>
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|रचनाकार=तुलसी रमण
|संग्रह=घर एक यात्रा / तुलसी रमण
}}
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एक साँचों का घर है
जिसके अलग-अलग आकार के
अनेक साँचों में
एक ही आदमी रहता है
हर सुबह
सायरन बजने पर
साचों के के घर में घुसता है
और दिन भर
हर साँचे के आकार में
फैलता और
सिकुड़ता जाता है
सबसे बड़े साँचे से
सबसे छोटे साँचे की ओर
आदेश का दरिया
बहता है
सबसे छोटे साँचे से सबसे बड़े साँचे तक
सर-सर हवा
निसरती है
</poem>
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