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नूरा / मजाज़ लखनवी

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मेरी हुक्मरानी है अहले ज़मीं पर
यह तहरी था साफ़ उसकी जबीं पर
सफ़ेद और शफ़्फ़ाफ़ कपद़्ए कपड़े पहन कर
मेरे पास आती थी इक हूर बन कर
*** 
कभी उसकी शोख़ी में संजीदगी थी
कभी उसकी संजीदगी में भी शोख़ी
घड़ी चुप घड़ी करने लगती थी बातें
सिरहाने मेरे काट देती थी रातें
*** 
सिरहाने मेरे एक दिन सर झुकाए
वोह बैठी थी तकिए पे कोहनी तिकाएटिकाए
ख़यालाते पैहम में खोई हुई -सी
न जागी हुई-सी , न सोई हुई-सी
झपकती हुई बार-बार उसकी पलकें
जबीं पर शिकन बेक़रार उसकी पलकें
***
मुझे लेटे-लेटे शरारत की सूझी
जो सूझी भी तो किस शरारत की सूझी
मैं देखूँगा उसके बिफरने का आलम
जस्वानी का ग़ुस्सा बिखरने का आलम
 
इधर दिल में इक शोरे-महशर बपा था
मगर उस तरफ़ रंग ही दूसरा था