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{{KKRachna
|रचनाकार=अनूप सेठी
}}
<poem>
कॉन्वेंट पढ़ी लड़की सी चबर चबर
सुबह
तड़के ही खलेर देती पँख
मार्च की दोपहर
मनहूस
भांय भांय सूरज
अचानक
उदास मायूस शाम
पसरी हुई
अँधेरे में अकस्मात रात
बेजानी
सारा का सारा दिन
किसी दूसरे शहर का
किसी दूसरे शहर में
किससे मिलना है
कहाँ जाना है
पता ही नहीं
फिर भी रहना है
कहना है बहुत कुछ
किससे
कब
पता ही तो नहीं।
(1986)
</poem>
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|रचनाकार=अनूप सेठी
}}
<poem>
कॉन्वेंट पढ़ी लड़की सी चबर चबर
सुबह
तड़के ही खलेर देती पँख
मार्च की दोपहर
मनहूस
भांय भांय सूरज
अचानक
उदास मायूस शाम
पसरी हुई
अँधेरे में अकस्मात रात
बेजानी
सारा का सारा दिन
किसी दूसरे शहर का
किसी दूसरे शहर में
किससे मिलना है
कहाँ जाना है
पता ही नहीं
फिर भी रहना है
कहना है बहुत कुछ
किससे
कब
पता ही तो नहीं।
(1986)
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