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{{KKRachna
|रचनाकार=रेखा
|संग्रह=चिंदी-चिंदी सुख / रेखा
}}
<poem>
अचानक
चौंकती हूँ स्वप्न में
लगता है द्वार पर हुई दस्तक
सहसा
घाटी से धुंध
आकर लिपट जाती गिर्द
क्या तुम आओगे इसी तरह?
</poem>
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|रचनाकार=रेखा
|संग्रह=चिंदी-चिंदी सुख / रेखा
}}
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अचानक
चौंकती हूँ स्वप्न में
लगता है द्वार पर हुई दस्तक
सहसा
घाटी से धुंध
आकर लिपट जाती गिर्द
क्या तुम आओगे इसी तरह?
</poem>