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{{KKRachna
|रचनाकार=विजय सिंह
|संग्रह=
}}
<Poem>
'''यश के लिए
अँधेरे की काया पहन
चमकीले फूल की तरह
खिल उठती है रात
अँधेरा, धीरे से लिखता है
आसमान की छाती पर
सुनहरे अक्षरों से
चाँद-तारे
और
मेरी खिड़की में
जगमग हो उठता है
आसमान
अक्सर रात के बारह बजे
मेरी नींद टूटती है
खिड़की में देखता हूँ
चाँद को
तारों के बीच
हँसते-खिलखिलाते
ठीक इसी समय
नींद में हँसता है मेरा बेटा
बेटे की हँसी में
हँसता है मेरा समय।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=विजय सिंह
|संग्रह=
}}
<Poem>
'''यश के लिए
अँधेरे की काया पहन
चमकीले फूल की तरह
खिल उठती है रात
अँधेरा, धीरे से लिखता है
आसमान की छाती पर
सुनहरे अक्षरों से
चाँद-तारे
और
मेरी खिड़की में
जगमग हो उठता है
आसमान
अक्सर रात के बारह बजे
मेरी नींद टूटती है
खिड़की में देखता हूँ
चाँद को
तारों के बीच
हँसते-खिलखिलाते
ठीक इसी समय
नींद में हँसता है मेरा बेटा
बेटे की हँसी में
हँसता है मेरा समय।
</poem>