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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वेणु गोपाल |संग्रह= }} <poem> ऎसा क्यों होता है- कि कवि ...
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{{KKRachna
|रचनाकार=वेणु गोपाल
|संग्रह=
}}
<poem>
ऎसा क्यों होता है-
कि कवि
और उसकी कविता
आपस में
मिल तक नहीं पाते
सदियाँ बीत जाती हैं
कविता आ रही होती है
तो कवि जा चुका होता है
और कवि आ रहा होता है
तो कविता जा चुकी होती है
और
कभी किसी
ऎतिहासिक संयोग से
अगर
वे मिल जाते हैं
तो
हिन्दी साहित्य को
पता तक
नहीं चल पाता!
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=वेणु गोपाल
|संग्रह=
}}
<poem>
ऎसा क्यों होता है-
कि कवि
और उसकी कविता
आपस में
मिल तक नहीं पाते
सदियाँ बीत जाती हैं
कविता आ रही होती है
तो कवि जा चुका होता है
और कवि आ रहा होता है
तो कविता जा चुकी होती है
और
कभी किसी
ऎतिहासिक संयोग से
अगर
वे मिल जाते हैं
तो
हिन्दी साहित्य को
पता तक
नहीं चल पाता!
</poem>