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एक चाय की चुस्की / उमाकांत मालवीय
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01:29, 8 सितम्बर 2006
एक कसम जीने की
ढेर
उलझने
उलझनें
दोनों गर नहीं रहे
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घनश्याम चन्द्र गुप्त