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{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कविता वाचक्नवी
}}
<poem>
'''घट'''
बाँझ होता प्राणवायु
मन्नतों, आशीष, वचनों का उपाय
धर्म का आह्वान
मुक्ति श्राप से
औ’ सूर्य का छिप लौट जाना
पृथ्वियों के गीत
लहरों सरगमों का फूट जाना।
::::: हर घड़ा कच्चा बना है।
</poem>
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|रचनाकार=कविता वाचक्नवी
}}
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'''घट'''
बाँझ होता प्राणवायु
मन्नतों, आशीष, वचनों का उपाय
धर्म का आह्वान
मुक्ति श्राप से
औ’ सूर्य का छिप लौट जाना
पृथ्वियों के गीत
लहरों सरगमों का फूट जाना।
::::: हर घड़ा कच्चा बना है।
</poem>