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यूँ सब को भुला दे कि तुझे कोई न भूले।
 
दुनिया ही में रहना है तो दुनिया से गुज़र जा॥
 क्या-क्या गिले न थे कि इधर देकते देखते नहीं। देखा तो कोई देखनेवाला नहीं रहा।रहा।। 
एक आलम को देखता हूँ मैं।
 
यह तेरा ध्यान है मुजस्सिम क्या॥
 
फ़ुरसते-रंजेअसीरी दी न इन धड़कों ने हाय।
 
अब छुरी सैयाद ने ली, अब क़फ़स का दर खुला॥
 
मंज़िले-इश्क़ पै तनहा पहुँचे कोई तमन्ना साथ न थी।
 थक-थक कर इस राह में आख़िर इक-इक साथी छूट हया॥गया॥