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13:30, 4 अगस्त 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सीमाब अकबराबादी
|संग्रह=
}}
[[Category:गज़ल]]
<poem>
ख़ामोश हूँ मुद्दत से नाले हैं न आहें हैं।
मेरी ही तरफ़ फिर भी दुनिया की निगाहें हैं॥
‘सीमाब’ गुज़रगाहे-उल्फ़त को भी देख आये।
बिगडे हुए रस्ते हैं, उलझी हुई राहें हैं॥
</poem>