भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=ओमप्रकाश सारस्वत | संग्रह=शब्दों के संपुट में / ...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
| रचनाकार=ओमप्रकाश सारस्वत
| संग्रह=शब्दों के संपुट में / ओमप्रकाश सारस्वत
}}
<poem>साल में बस एक बार
मंगतू और भीखू के जातकों को
राम-लक्ष्मण की पोशाक पहना देने से
या उनके मैले माथों पर
चमकते मुकुट चढ़ा देने से
रामायण की फलावाप्ति नहीं हो सकती

राम राज्य की परिकल्पना का यह उद्योग
कुछ खास होने के इंतज़ार में
कुछ भी खास न होने के स्वांग जैसा है

वर्षानुवर्ष दशहरा-स्थल पर
असंख्य रावणादि के बुतों पर
प्लास्टिक के तीर मारने से
बुराईयों का परिवार नहीं मरा करता
बाल-व्यायामों से----
कोई मल्ल नहीं डरा करता

अतः इस विस्तृत झूठ के सिन्धु में
असलियत को पैट्रोल की तरह खोजो
झाग को पैट्रोल समझना छोड़ो

अन्यथा हर दशहरे की अभ्यस्त आग
तुम्हें लपट-दर-लपट बहकाती रहेगी
और तुम्हारे संतोष के लिए
केवल बाँस के रावण जलाती रहेगी
</poem>
Mover, Uploader
2,672
edits