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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरोज परमार |संग्रह= घर सुख और आदमी / सरोज परमार }} [[C...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सरोज परमार
|संग्रह= घर सुख और आदमी / सरोज परमार
}}
[[Category:कविता]]
<poem>जब भी होठों एक क़टोरों से
उबलता हुआ
एक बूँद शब्द
जीवन की ढलान पर
फिसल जाता है
में बहुत निरीह हो उठती हूँ
फिर(अपनी नज़र में)
आस्था की पसली बह निकलती है।</poem>
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|रचनाकार=सरोज परमार
|संग्रह= घर सुख और आदमी / सरोज परमार
}}
[[Category:कविता]]
<poem>जब भी होठों एक क़टोरों से
उबलता हुआ
एक बूँद शब्द
जीवन की ढलान पर
फिसल जाता है
में बहुत निरीह हो उठती हूँ
फिर(अपनी नज़र में)
आस्था की पसली बह निकलती है।</poem>