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{{KKRachna
|रचनाकार=हरकीरत हकीर
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<poem>रात जुगनुओं ने इश्क़ का जाम भरा

तारे सेहरा बांधे दुल्हे से सजने लगे

सबा का इक झोंका उड़ा ले गया चुपके से

चाँदनी सपनों की पालकी में जा बैठी !


शब ने मदहोशी का आलम बुना

आसमां नीली चादर बिछाने लगा

मुहब्बत का मींह बरसाया बादलों ने

चाँद आशिकी का गीत गाने लगा !


हुश्न औ' इश्क नशेमंद आँखों में

प्रीत की कब्रों में सजते रहे

कभी चिनवाये गए जिंदा दीवारों में

कभी चनाब के पानी में बहते रहे !</poem>
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