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|रचनाकार=जगदीश रावतानी आनंदम
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कुदरत का ये करिशमा भी क्या बेमिसाल है
चेहरे सफेद काले लहू सब का लाल है

हिन्दू से हो सके न मुस्लमां की एकता
दूरी बनी रहे ये सियासत की चाल है

हिन्दू से हो सके न मुस्लमां की एकता
दूरी बनी रहै ये सियासत की चाल है

धरती पे आदमी ने बसाई है बसतीयां
इन्सानीयत का आज भी दुनीयां मे काल है

इक दूसरे के वास्ते पैदा हुए है हमं
तेरा जो हाल है वही मेरा भी हाल है

दिन ईद का है आके गले से लगा मुझे
होली पे जैसे तू मुझे मलता गुलाल है
</poem>