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Kavita Kosh से
पानी के इन्तिज़ार में बैठा हुआ हूँ मैं
कैसे अजीब दौर में पैदा हुआ हूँ मैं
नस -नस में फैल जाऊँगा बीमार रात की
पलकों पे आज शाम से सिमटा हुआ हूँ मैं
औराक़ में चिपटी छिपाती थी अक़्सर वो तितलियाँ
शायद किसी किताब में रक्खा हुआ हूँ मैं