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|संग्रह=निशा निमन्त्रण / हरिवंशराय बच्चन
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मुझ से चाँद कहा करता है--
चोट कडी है काल प्रबल की,उसकी मुस्कानों से हल्की,राजमहल कितने सपनों का पल में नित्य ढहा करता है|मुझ से चांद चाँद कहा करता है--
तू तो है लघु मानव केवल,
पृथ्वी-तल का वासी निर्बल,
तारों का असमर्थ अश्रु भी नभ से नित्य बहा करता है।
मुझ से चाँद कहा करता है--
चोट कडी है काल प्रबल की,<br>उसकी मुस्कानों से हल्की,<br>राजमहल कितने सपनों का पल में नित्य ढहा करता है,<br>मुझसे चांद कहा करता है<br>  तू तो है लघु मानव केवल,<br>पृथ्वी तल का वासी निर्बल,<br>तारों का असमर्थ अश्रु भी नभ में नित्य बहा करता है,<br>मुझसे चांद कहा करता है<br>  तू अपने दुख में चिल्लाता,<br>आँखो देखी बात बताता,<br>तेरे दुख से कहीं कठिन दुख यह जग मौन सहा करता है<br>है।मुझसे चांद मुझ से चाँद कहा करता है--<br/poem>
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