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|संग्रह=निशा निमन्त्रण / हरिवंशराय बच्चन
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मुझ से चाँद कहा करता है--
चोट कडी है काल प्रबल की,उसकी मुस्कानों से हल्की,राजमहल कितने सपनों का पल में नित्य ढहा करता है|मुझ से चांद चाँद कहा करता है--
तू तो है लघु मानव केवल,
पृथ्वी-तल का वासी निर्बल,
तारों का असमर्थ अश्रु भी नभ से नित्य बहा करता है।
मुझ से चाँद कहा करता है--