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{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>कू S S S ऊ S S S
कोई S S S है
दूसरी आवाज़ आई
मैं हूँ S S S
कोयल बोली:
कू S S S ऊ S S S
दूसरी आवाज़:
कू S S S ऊ S S S
अपनी अपनी पारी से
दो कंठ गाएँ
कोयल की पंचमी
मानुष शिशु की वही
कू S S S ऊ S S S
गरमी का ताप दबे
सुर का हिम पवन पटल पर पसरे।
17.11.2002 </poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>कू S S S ऊ S S S
कोई S S S है
दूसरी आवाज़ आई
मैं हूँ S S S
कोयल बोली:
कू S S S ऊ S S S
दूसरी आवाज़:
कू S S S ऊ S S S
अपनी अपनी पारी से
दो कंठ गाएँ
कोयल की पंचमी
मानुष शिशु की वही
कू S S S ऊ S S S
गरमी का ताप दबे
सुर का हिम पवन पटल पर पसरे।
17.11.2002 </poem>