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ब्रह्माण्ड की सत्ता मोरी है
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अथवा बहुनैतेन किं ज्ञातेन तवार्जुन।विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत्॥१०- ४२॥
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अथ बहुतहि जाननि सों अर्जुन !
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