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|रचनाकार=मनीषा पांडेय|संग्रह=
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पुराने छोटे पड़ गए कपड़ों की तरह
बंद कर किसी जंग खाए संदूक में
पुरानी यादों को
कहीं दूर छोड़ आऊँ
इतनी दूर
कि पहचानकर मेरा संदूक
कोई वापस न छोड़ जाए मेरे दरवाज़े
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